এই গল্পটি পূজা এবং রাধার। দুই বোনের যারা একই ছাদের নিচে বড় হয়েছে, একই স্কুলে পড়েছে এবং ছোটবেলায় একে অপরের সবচেয়ে ভালো বন্ধু ছিল। কিন্তু সময়ের সাথে সাথে তাদের সম্পর্কের মধ্যে এমন কিছু পরিবর্তন আসে যে, যেখানে আগে ভালোবাসা ও সহযোগিতা ছিল, সেখানে এখন তুলনা ও ঈর্ষা জায়গা করে নিয়েছে।
মা-বাবার তুলনা থেকেই ফাটল
যখন থেকে মা-বাবা পূজা ও রাধার মধ্যে তুলনা করতে শুরু করেন, তখন থেকেই তাদের মধ্যে তিক্ততা সৃষ্টি হতে থাকে। রাধা পড়াশোনায় ভালো ছিল এবং পূজা কারুশিল্প, ছবি আঁকা এসব ভালোবাসত। কিন্তু মা-বাবা সবসময় পূজাকে বলতেন, 'রাধার মতো পড়ো,' এবং রাধাকে বলতেন, 'পূজার মতো নতুন কিছু করো।' এভাবে দুজনেরই মনে হতে থাকে যে তারা একে অপরের থেকে কম। ধীরে ধীরে দুই বোনের মধ্যে ভালোবাসার জায়গাটি প্রতিযোগিতায় ভরে যায়। পূজা ভাবত, বাবা-মায়ের কাছে রাধাই বেশি পছন্দের, আর রাধার মনে হত সবাই পূজার প্রশংসা করে। এই পারস্পরিক তুলনা তাদের মনে দূরত্ব তৈরি করে এবং একে অপরের প্রতি ঈর্ষা জন্ম দেয়।
ছোট ছোট বিষয়গুলোই হয়ে দাঁড়ায় ইগোর প্রশ্ন
যখনই পূজা নতুন কিছু পেত – যেমন নতুন ফোন বা নতুন পোশাক – তখন রাধা চুপ হয়ে যেত, কিন্তু ভেতরে ভেতরে ঈর্ষা অনুভব করত। তার মনে হত মা-বাবা শুধু পূজার দিকেই ध्यान দেন। অন্যদিকে, রাধা যখন কোনো পরীক্ষায় ভালো নম্বর পেত, তখন পূজা মুচকি হাসার বদলে চুপ থাকত। সে ভাবত, সবাই শুধু রাধার প্রশংসা কেন করে। ধীরে ধীরে এই পারস্পরিক ইগো এতটাই বেড়ে যায় যে দুই বোনের মধ্যে ভালোবাসা কমে গিয়ে ঈর্ষা বেড়ে যায়। তারা একে অপরের খুশিতে খুশি হতে ভুলে যায়। ছোট ছোট বিষয়ও তাদের জন্য প্রতিযোগিতার কারণ হয়ে দাঁড়ায়। এই বিষয়গুলোই ধীরে ধীরে সম্পর্ককে দুর্বল করতে থাকে, এবং দুই বোন একই ছাদের নিচে থেকেও একে অপরের থেকে দূরে সরে যেতে থাকে।
কলেজের জীবন এবং আলাদা পথ
কলেজে যাওয়ার পরেই রাধা ও পূজার পথ अलग হয়ে যায়। রাধা ইঞ্জিনিয়ারিং বেছে নেয় আর পূজা ফ্যাশন ডিজাইনিং-এ চলে যায়। পড়াশোনার এই আলাদা ক্ষেত্র তাদের চিন্তাভাবনার মধ্যেও দূরত্ব আনতে শুরু করে। পূজার মনে হত, সবাই রাধার পড়াশোনাকে বেশি গুরুত্ব দেয়, जबकि তার कला और পরিশ্রমকে কেউ বোঝে না। वहीं राधा का लग सकता है कि पूजा अब बहुत स्टाइलिश हो गई है और लोग उसी की तारीफ करते हैं। দুজনের এই চিন্তা ধীরে ধীরে ঈর্ষায় পরিবর্তিত হতে থাকে। তারা একে অপরের সাফল্যকে গ্রহণ করার পরিবর্তে তুলনা করতে শুরু করে। ভালোবাসার পরিবর্তে মনে প্রশ্ন এবং ঈর্ষা বাসা বাঁধতে থাকে। তারা भूल गईं कि वे बहनें हैं, एक-दूसरे की ताकत बन सकती हैं, लेकिन बन गईं एक-दूसरे की प्रतियोगी।
সোশ্যাল মিডিয়া থেকে বাড়ে দূরত্ব
পূজা ও রাধা आपस में बहनें थीं, लेकिन उनके बीच हमेशा एक छुपी हुई जलन रहती थी। अगर पूजा को कोई तारीफ करता, तो राधा का मूड खराब हो जाता। और जब राधा को कोई नई चीज मिलती, तो पूजा भी चुपचाप दुखी हो जाती। दोनों के दिल में प्यार था, लेकिन एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ रिश्ते को कमजोर कर रही थी। धीरे-धीरे छोटी-छोटी बातें बड़ी लगने लगीं। सोशल मीडिया पर किसको ज्यादा लाइक्स मिले या किसकी फोटो ज्यादा सुंदर लगी, यही बातें उनके बीच टकराव का कारण बनती रहीं। बिना किसी वजह के वे एक-दूसरे से दूर होती जा रही थीं, और उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि असली खुशी तो साथ होने में है, न कि मुकाबले में।
একটি দুর্ঘটনা যা বদলে দিল চিন্তা
সবকিছু ऐसे ही चलता रहता अगर एक दिन पूजा का एक्सिडेंट न होता। उसे कुछ दिन अस्पताल में रहना पड़ा। राधा भागी-भागी आई, बिना किसी शिकायत के। वह पूजा की सेवा में लगी रही, उसके बाल संवारे, खाना खिलाया और अस्पताल में उसके सिरहाने बैठी रही। उन दिनों में दोनों बहनों के बीच कुछ ऐसा पिघला जो सालों से जम गया था – और वो था दिल का बर्फ। पहली बार दोनों ने एक-दूसरे की आंखों में जलन नहीं, बल्कि चिंता और प्यार देखा।
ক্ষমা এবং সমঝোতা: সম্পর্কের নতুন শুরু
पूजा ने राधा की आंखों में देखकर कहा, 'बहन, मुझे माफ़ करना। मैं हमेशा तुमसे जलती रही और तुम्हारी खुशियों में खुश नहीं हो पाई।' राधा थोड़ी देर चुप रही, फिर उसने पूजा का हाथ पकड़ लिया और बोली, 'मैं भी गलती पर थी पूजा, मैंने भी तुम्हें अपना प्रतिद्वंदी समझा, बहन नहीं।' उन दोनों की आंखों में आंसू थे लेकिन दिल हल्का हो चुका था। उस दिन से दोनों ने तय किया कि अब से वे एक-दूसरे से नहीं जलेंगी, बल्कि एक-दूसरे की ताकत बनेंगी। समझदारी और माफ़ी ने उनके रिश्ते में फिर से प्यार और भरोसा लौटा दिया।
यह कहानी सिर्फ पूजा और राधा की नहीं है, यह हर उस भाई-बहन की कहानी हो सकती है जो एक-दूसरे से तुलना के जाल में उलझ जाते हैं। रिश्ते जब मुकाबले बन जाते हैं, तो प्यार दम घोंटने लगता है। लेकिन अगर दिल से रिश्तों को देखें, तो सबसे बड़ा सहयोगी वही होता है जो हमारे साथ बड़ा हुआ है।